कृष्ण के आशीर्वाद के चलते यहाँ भक्त चंद्रमा दास का प्रादुर्भाव हुआ, वे कैमरी से कनक दंडवत देते हुए उड़ीसा के पुरी मंदिर गए। भगवान जगन्नाथ ने चंद्रमा दास को साक्षात दर्शन दिए और इच्छानुसार भगवान सविग्रह, भाई बलदाऊ, धाम नगर संत शिरोमणि श्री श्री 1008 श्री चंद्रमादास जी महाराज बहिन सुभद्रा के सहित कैमरी पधारे।

इनका जन्म सुधर्मा देवी के गर्भ से हुआ। इनके पिता का नाम मुरलीधर गुर्जर था। ऐसा कहा जाता है कि भक्त उद्धव का जन्म चन्दनराम के रूप में हुआ और वे चन्दनराम से चन्द्रमादास हो गये। मुरलीधर गुर्जर ने इनका विवाह विक्रम संवत् 1722 में जहाजपुर निवासी अवाना गोत्र की सुलक्षणा लड़की जमना देवी से करवा दिया।

विक्रम संवत् 1725 ज्येष्ठ शुक्ला 12 शुक्रवार अनुराधा नक्षत्र में सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर भक्त चन्द्रमादास कनक दण्डवत करते हुए जगन्नाथ धाम उड़ीसा के लिए प्रस्थान करते हैं। निरन्तर कनक दण्डवत से उनके शरीर में घाव हो गए और कीड़े पड़ गए, जो जमीन पर गिरने लगे। भक्त उन कीड़ों को वापस अपने घावों में रखने लगे ताकि वे जीव परेशान न हों। यह देखकर भगवान का सिंहासन काँपने लगा।

भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र को आदेशित किया और माया के वशीभूत करके अपने रथ से अविलम्ब भक्त को जगन्नाथपुरी पहुँचा दिया। वहाँ पहुँचते ही भक्त की देह ताम्रवर्णी हो गई। भगवान भक्त से प्रसन्न होकर वरदान मांगने के लिए बोले। भक्त चन्द्रमादास ने भगवान का स्वरूप तीनों मूर्तियाँ मांगी और कहा – “महाराज! मैं आपको इसी रूप में गाँव कैमरी में ले जाना चाहता हूँ।”

तब भगवान ने कहा – “भक्त! यह तुम्हारा मेरा पूर्व जन्म का संस्कार है। कैमरी के भक्तों से मैंने द्वापर में वादा किया था कि मैं एक दिन यहाँ स्थापित रहूँगा।” फिर भगवान ने विश्वकर्मा को आदेशित किया कि वे तीनों मूर्तियाँ बनाएं। इन्द्र के रथ में विराजमान होकर वे कैमरी को धाम बनाने के लिए प्रस्थान कर गए। विक्रम संवत् 1735 में आषाढ़ सुदी 2 को गाँव कैमरी में विधिवत रूप से स्थापित हो गए। इस प्रकार इस स्थान को पुरी के बाद अपना दूसरा तीर्थ स्थल बनाया गया।

भक्त चन्द्रमादास निरंतर पूजा-अर्चना करते और उनकी भक्ति में लीन रहते थे। विक्रम संवत् 1820 में वे समाधि में लीन हो गए। उनकी समाधि आज भी मन्दिर के सामने बनी हुई है।