
रणनृत्य :-रणनृत्य एक पारंपरिक नृत्य है जो युद्ध के भावों और शौर्य को व्यक्त करता है, और इसका उद्देश्य शत्रुओं को भयभीत करना और युद्ध के मैदान में एकता स्थापित करना है। यह नृत्य योद्धाओं की संख्या कम होने पर उन्हें भ्रमित करने के लिए किया जाता था, जिससे दुश्मन को लगे कि उनकी संख्या अधिक है। यह नृत्य राजस्थान के चंबल क्षेत्र में गुर्जर समुदाय में जीवित है, जो इसे अपनी प्राचीन सांस्कृतिक और युद्ध कौशल का एक हिस्सा मानते हैं।

रसिया:- गुर्जर रसिया एक लोकप्रिय लोक-संगीत है जो ब्रज की भूमि से जुड़ा है, और इसमें गायक के व्यक्तित्व व गीत की प्रकृति दोनों को दर्शाया जाता है और इसमें भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया जाता है।

गोधन गीत:- कुछ मान्यताओं के अनुसार गोधन भगवान कृष्ण का एक रूप है, इस तरह, गोधन गीत एक सामाजिक और धार्मिक परंपरा से जुड़ा इस त्यौहार में घरों में गाय-भैंस के गोबर से गोवर्धन पर्यंत की देव कियी आकृति बनायी जाती है, जिसे गोधन कहते हैं,गोधन के ऊपर गोबर के बने हुएगाय-भैंस और ग्वाले भी रखे जाते हैं,गोधन के साथ इंडिया-पारे और दूध बिलोने की रही भी रखी जाती हैं, घर-कुनवे- गाँव के लोग ग्वाले के रूप में इकट्ठे होकर गोधन के दोनों ओर खडे हो जाते हैं, तब गोधन गीत गाया जाता हैं, उसके बाद गोधन की परिक्रमा करते हैं,

अंकमाला:- दूल्हा और दुल्हन पक्छ के लोगो द्वारा एक सामूहिक कार्यक्रम किया जाता है जिसमे खुशहाल जिंदगी जीने के गीत और दूल्हा और दुल्हन के लिए मंगल कामनाएं की जाती है. इसके बाद दूल्हा और दुल्हन पक्छ के लोग एक-दूसरे के साथ हंसी-मजाक करते हैं।

मांडणे:- क्षेत्र की एक पारंपरिक लोक कला है, जिसे विशेष अवसरों पर घर के आंगन या दीवारों पर बनाया जाता है जिसमें चावल के पेस्ट, चूना, गेरू और गोंद जैसी सामग्री का उपयोग करके फूल और देवी-देवताओं भगवान जगदीश की चित्रकारी की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से गांव में परिणामस्वरूप, ऐसी असामान्य घटना नहीं घटती.

कीर्तन दंगल :- हरि कीर्तन दंगल एक भक्तिमय और सांस्कृतिक कार्यक्रम है जिसमें विभिन्न कीर्तन पार्टियां भगवान के नामों का गायन, भजन, धार्मिक कथाएँ और लोकगीतों के माध्यम से प्रस्तुतियाँ देती हैं. इसे ‘पद दंगल’ या ‘कन्हैया दंगल’ के रूप में भी जाना जाता है. दंगल का मुख्य उद्देश्य धार्मिक उत्साह बढ़ाना और श्रोताओं को कथाएँ सुनाकर मंत्रमुग्ध करना है, जो इसे आस्था और मनोरंजन का केंद्र बनाता है भगवान जगदीश जी के परिसर में यह महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

गोठ:- कैमरी परिक्षेत्र के साथ साथ पूर्वी राजस्थान में गोंठ, गायन का प्रचलन है। इसकी उत्पत्ति चौबीस बगड़ावत वीरों की कहानियों के गायन से शुरू हुई। गोंठ, गायन में गाँव के तीस चालीस लोगों द्वारा गान किया जाता है।
लोकगीत:- चालीस पचास लोगों के गुट बनाकर करतल ध्वनि के साथ प्रस्तुति चालीस पचास लोगों के गुट बनाकर करतल ध्वनि के साथ प्रस्तुति
दी जाती है ग्रामीण जीवन, परंपराओं, रीति-रिवाजों और उत्सवों से जुड़े होते हैं और अपने सरल संगीत, सहज प्रवाह तथा आम लोगों की भावनाओं को व्यक्त करते हैं

हरियाली तीज:-विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए यह व्रत रखती हैं, वहीं कुंवारी लड़कियां अच्छा जीवनसाथी पाने के लिए यह व्रत करती हैं. सावन के महीने में चारों ओर छाई हरियाली और वर्षा ऋतु की सुंदरता का भी यह उत्सव हैइस दिन सभी महिलाएं भगवान जगदीश के मंदिर में जाकर उनकी पूजा करती हैं।
अमावस्या:- अमावस्या के दिन भगवान जगदीश सूर्य देव की पूजा की जाती है। साथ ही पितरों के लिए विशेष पूजा भी की जाती है, अमावस्या के दिन भी मेले का आयोजन होता है जिसमे दूर-दराज में भक्त अपनी श्रद्धा से आते है तथा ‘जय जगदीश” का जाप करते हुए अपनी मनोकामना पूरी करने की आस लगाते हैं।

गणगौर की सवारी :-जिसमें गण (शिव) और गौर (पार्वती) की मूर्तियों को पारंपरिक वेशभूषा के साथ गांव में घुमाया जाता है, जिससे महिलाएं और पर्यटक भाग लेते हैं। यह लोक कलाकारों द्वारा की जाने वाली नृत्य-कला प्रदर्शनों के साथ उत्सवपूर्ण माहौल में भगवान जगदीश के मंदिर में जाकर पूजा करते है

रक्षाबंधन :- महाभारत काल में जब भगवान कृष्ण (भगवान जगदीश )की उंगली में चोट लगी थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का टुकड़ा बांधकर उनके घाव पर लगाया था. इसके बदले कृष्ण ने द्रौपदी को वस्त्र हरण से बचाया था और उनकी रक्षा का वचन निभाया था. इस दिन सभी ग्राम बसी भगवान के मंदिर में आके भगवान की कलाई में राखी बांधकर मनोकामना पूरी होने की पूजा करते है.

जन्माष्टमी :- भगवान कृष्ण ((भगवान जगदीश )के जन्म का पर्व है, जो आधी रात को मनाया जाता है। इस दिन गाँव में एक मेला लगता है। आस-पास के गाँवों से बहुत से लोग मेले में आते हैं। वहाँ मिठाइयाँ, खिलौने और कपड़े बेचने वाली कई दुकानें लगती हैं।भजन-कीर्तन का आयोजन एवं विशेष धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है. जन्माष्टमी अत्यंत धूमधाम से मनाई जाती है।

दशहरा:- बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक , रावण पर राम की विजय, इसमें रामलीला, राम के जीवन की कहानी का एक भव्य नाट्य मंचन। रावण के पुतले—अक्सर रावण के पुतलों के साथ मेघनाद (रावण का पुत्र) और कुंभकरण (रावण का भाई) को पटाखों से भरकर शाम के समय खुले मैदान में जला दिया जाता है। उसके बाद सभी लोग एक साथ ((भगवान जगदीश )के मंदिर में जाते हैं और पूजा करते हैं। इस दिन गाँव में एक मेला लगता है.

दीपावली:-दिवाली का पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन मनाई जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी की आराधना करने से व्यक्ति को धन धान्य और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि, दिवाली के अवसर पर ही भगवान राम 14 वर्ष का वनवास से वापस लौटे थे। दिवाली अमावस्या का मेला सुबह से सायं 7 बजे तक चलता है जो (भगवान जगदीश जी) की शयन आरती के बाद समाप्त ही किया जाता है। दीपावली के दिन गुर्जर समुदाय के लोग एक स्थान पर एकत्रित होकर मानव श्रृंखला बनाते हुए हाथ में डाब लेकर पितृ तर्पण अर्पित करते है। खास विशेषता को संजोकर रखने में खटाना गुर्जरों की अहम भूमिका है। खटाना परिवार के लोग श्री जगदीश मंदिर के पीछे नरभा तालाब की पाल पर पितृ तर्पण करते हैं।

होली :- इसमें पुरुष ऊंट की खाल से बनी डोलची में पानी भरकर एक-दूसरे पर फेंकते है इस दिन लोग अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को रंग और गुलाल लगाते हैं, उन्हें गले लगाते हैं और त्योहार मनाते हैं। यहाँ की कोडेमर होली और लट्ठमार होली को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है धूलेण्डी के दूसरे दिन द्वितीया को जगदीश चौक में खटाना परिवार के सात पीढ़ी के महिला पुरुष अलग अलग खंदों में भाभियों से होली खेलते है। जगदीश चौक का ये नजारा अद्भुत और मनोरम लगता है। इस क्षेत्र को पूरे राजस्थान में खास पहचान दिलाता है। शाम छह बजे झाँकी निकाली जाती है जिसे रंदूकड़ी कहते है.

गोवर्धन पूजा:- दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है । सम्पूर्ण गाँव की औरतें गोबरसे कछुआकार का पैनारेमा बनाते समय “गोवर्धन अधक मलूक बनायो राधारानी ने” गीत गाती है।जो कि ब्रज क्षेत्र सेजुड़े अपनत्व को दर्शाती हैं। मोरपंख, बिलौनी आदि इसमें टांग दी जातीहै।गाँव की महिलाएँ घर पर मावे से बनाई मिठाईयों, खीर पुरें और मक्खन दही आदि से पूजा करती है। गाँव के लोग एकजुट होकर “मानसी गंगा श्री हरदेव गिरवर की परिक्रमा देओं,” गाते हुए परिक्रमा करते है।एक-दूसरे को गले लगाते हैं, महिलाएँ भजन गाती है और एक-दूसरे को हल्दी का तिलक लगाते है। तदोपरांत ‘हीड़ो’ (खुशी में गाया जाने वाला लोक गीत) पुरुषों के द्वारा गाया जाता है। उसके बाद सभी लोग एक साथ ((भगवान जगदीश )के मंदिर में जाते हैं और पूजा करते हैं।

जलझूलनी एकादशी महोत्सव:- इस एकादशी पर (भगवान जगदीश जी) और श्री गोपालजी की प्रतिमा को पालकी या सुन्दर डोले में बिठाकर जल में भ्रमण कराया जाता है, इसीलिए इसे ‘जलझूलनी’ या ‘डोल ग्यारस’ कहते हैं जगदीश मंदिर से प्रारम्भ होकर यह पालकी गोपालजी के मंदिर तक आती है, तत्पश्चात गोपालजी के महंत द्वारा पालकी पूजन के पश्चात यह पालकी गांव का भ्रमण करती हुई पुनः हनुमानजी के बगीचे में जाती है। जहां पूजा की हुई फलो को तालाब में डाला जाता है उसके बाद ग्वाले तालाब से फल निकालकर सभी भक्तों के बीच वितरित करते हैं। यह उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।