श्री जगदीश धाम कैमरी का इतिहास – द्वापर युग का संबंध

  • भगवान श्री कृष्ण का आगमन: आज से लगभग 5,000 साल पहले, भगवान श्री कृष्ण अपने बड़े भाई बलदाऊ और ग्वाल-बालों के साथ मथुरा से उज्जैन के संदीपनी ऋषि के आश्रम में शिक्षा प्राप्त करने के लिए निकले थे। यात्रा के दौरान, जब उन्हें रात्रि विश्राम की आवश्यकता हुई, तो उन्हें कैमरी का यह क्षेत्र पसंद आया, जो उस समय एक सुरम्य कैर का जंगल था। उन्होंने यहाँ एक रात विश्राम किया।
  • गाँव की उत्पत्ति: जो ग्वाल-बाल पान्हौरी गांव से यहाँ आये थे उनमें से कुछ रुक गए और वे यहीं बस गए और कुछ वापस पान्हौरी गांव चले गए। इस क्षेत्र में कैर (करील) के पेड़ों की बहुतायत के कारण इसे “कैर वन” के नाम से जाना जाने लगा, जो बाद में ‘कैमरी’ कहलाया।
  • भविष्यवाणी और ग्वाल-बालों का ठहराव: अगली सुबह, जब वे आगे बढ़ रहे थे, तो भगवान श्री कृष्ण ने इस स्थान की सुंदरता को देखकर कहा था कि मै समय-समय पर अपने बाल सखा और ब्रजवासियों के साथ लीला करने इस पवित्र स्थान पर आया करूंगा।” उनके कुछ बाल सखा और ब्रज के पान्हौरी गांव से कुछ ग्वाले भी आये थे।, उनके कुछ बाल सखा उसी स्थान पे यहीं रुक गए , कुछ बापस चले गए ।इसी स्थान पर बाद में दो कुंड बने, जिनका नाम ‘गऊकुंड’ और ‘राधाकुंड’ रखा गया। ये दोनों कुंड आज भी उसी नाम से श्री जगदीश धाम कैमरी में मौजूद हैं।

कलियुग में भक्त चंद्रमादास द्वारा भगवान जगन्नाथ को लाना

  • भक्त चंद्रमादास का जन्म: बहुत समय बाद, कलियुग में, विक्रम संवत् 1701 (1644 ईस्वी) में भादों बुदी 5 को, नागतलाई गाँव (सवाई माधोपुर, राजस्थान) में एक भक्त चंद्रमादास का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम चन्द्रराम था।
  • पुरी की दंडवत यात्रा: चंद्रमादास ने एक कठिन यात्रा पर जाने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने माता-पिता और पत्नी जमनादेवी के मना करने के बावजूद, ओडिशा के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के लिए “कनक दण्डवत” यात्रा शुरू की। उनकी पत्नी जमनादेवी भी उनके साथ जाने की जिद पर अड़ी रहीं, लेकिन रास्ते में लोगों की निंदा सुनकर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
  • भगवान का वरदान: चंद्रमादास की अटूट भक्ति से प्रसन्न होकर, भगवान जगन्नाथ ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भक्त ने भगवान से उनके तीनों स्वरूपों (जगन्नाथ, बलदाऊ और बहिन सुभद्रा) की मूर्तियाँ अपने साथ कैमरी ले जाने की इच्छा व्यक्त की।
  • मूर्तियों की स्थापना: भगवान ने कहा कि वे द्वापर युग में किए गए वादे के अनुसार कैमरी में ही स्थापित होना चाहते हैं। उन्होंने विश्वकर्मा जी को तीनों मूर्तियाँ बनाने का आदेश दिया। ये मूर्तियाँ रथ में विराजकर कैमरी के लिए प्रस्थान कर गईं और विक्रम संवत् 1735 (1678 ईस्वी) में आषाढ़ सुदी 2 को कैमरी गाँव में विधिपूर्वक स्थापित हुईं।
  • भक्त की समाधि: भक्त चंद्रमादास ने जीवन भर इन मूर्तियों की सेवा की और विक्रम संवत् 1820 में इसी स्थान पर समाधि ले ली। उनकी समाधि आज भी मंदिर के सामने बनी हुई है।

इस प्रकार, जगदीश धाम कैमरी का इतिहास भगवान श्री कृष्ण के यहाँ विश्राम करने और बाद में भक्त चंद्रमादास जी द्वारा भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों को यहाँ लाने की घटनाओं से जुड़ा है। यह स्थान आज एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन केंद्र है।